मारुती स्तोत्र | Maruti Stotra : एक धार्मिक पाठ

मारुती स्तोत्र एक बहुत ही महत्वपूर्ण धार्मिक पाठ है। आज मैं इस लेख के माध्यम से बताने जा रहा हूँ की स्तोत्र प्रभु हनुमान की महिमा और उनकी शक्ति का वर्णन करता है, और उनके भक्तों को उनकी कृपा पाने का एक आसान है।

वही वही maruti stotra lyrics के द्वारा पाठ करने में आसानी होती है और सभी भक्तों को साहस, ऊर्जा और आत्मविश्वास मिलता है। हमारे हिन्दू धर्म में यह shri maruti stotra एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

हनुमान चालीसा में तुलसीदास ने लिखा है कि “नासै रोग, हरै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बल वीरा “। यही कारण है, कि जो व्यक्ति वास्तव में हनुमान जी का स्मरण करता है  उन्हें मन से याद करता है, उसके जीवन में आने वाली सभी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं और उंनका  जीवन खुशहाल और स्वस्थ हो जाता है। आइए श्री maruti stotra lyrics पढ़ें।

भीमरूपी महारुद्रा, वज्रहनुमान मारुती |
वनारी अंजनीसूता रामदूता प्रभंजना ||१||

महाबळी प्राणदाता, सकळां उठवी बळें |
सौख्यकारी दुःखहारी, दुत वैष्णव गायका ||२||

दीनानाथा हरीरूपा, सुंदरा जगदांतरा |
पाताळदेवताहंता, भव्यसिंदूरलेपना ||३||

लोकनाथा जगन्नाथा, प्राणनाथा पुरातना |
पुण्यवंता पुण्यशीला, पावना परितोषका ||४||

ध्वजांगे उचली बाहो, आवेशें लोटला पुढें |
काळाग्नी काळरुद्राग्नी, देखतां कांपती भयें ||५||

ब्रह्मांडे माईलें नेणों, आवळे दंतपंगती |
नेत्राग्नीं चालिल्या ज्वाळा, भ्रुकुटी ताठिल्या बळें ||६||

पुच्छ ते मुरडिले माथा, किरीटी कुंडले बरीं |
सुवर्ण कटी कांसोटी, घंटा किंकिणी नागरा ||७||

ठकारे पर्वता ऐसा, नेटका सडपातळू |
चपळांग पाहतां मोठे, महाविद्युल्लतेपरी ||८||

कोटिच्या कोटि उड्डाणें, झेपावे उत्तरेकडे |
मंद्राद्रीसारिखा द्रोणू, क्रोधें उत्पाटिला बळें ||९||

आणिला मागुतीं नेला, आला गेला मनोगती |
मनासी टाकिलें मागें, गतीसी तुळणा नसे ||१०||

अणुपासोनि ब्रह्मांडाएवढा होत जातसे |
तयासी तुळणा कोठे, मेरू मंदार धाकुटे ||११||

ब्रह्मांडाभोवतें वेढें, वज्रपुच्छें करू शकें |
तयासी तुळणा कैची, ब्रह्मांडी पाहता नसे ||१२||

आरक्त देखिलें डोळा, ग्रासिलें सूर्यमंडळा |
वाढतां वाढतां वाढें, भेदिलें शून्यमंडळा ||१३||

धनधान्य पशूवृद्धि, पुत्रपौत्र समग्रही |
पावती रूपविद्यादी, स्तोत्रपाठें करूनियां ||१४||

भूतप्रेतसमंधादी, रोगव्याधी समस्तही |
नासती तूटती चिंता, आनंदे भीमदर्शनें ||१५||

हे धरा पंधरा श्लोकी, लाभली शोभली बरी |
दृढदेहो निसंदेहो, संख्या चन्द्रकळागुणें ||१६||

रामदासी अग्रगण्यू, कपिकुळासि मंडणू |
रामरूपी अंतरात्मा, दर्शनें दोष नासती ||१७||

॥ इति श्रीरामदासकृतं संकटनिरसनं मारुतिस्तोत्रं संपूर्णम् ।

मारुति स्तोत्रम् | Maruti Stotram

ॐ नमो भगवते विचित्रवीरहनुमते प्रलयकालानलप्रभाप्रज्वलनाय।

प्रतापवज्रदेहाय। अंजनीगर्भसंभूताय।

प्रकटविक्रमवीरदैत्यदानवयक्षरक्षोगणग्रहबंधनाय।

भूतग्रहबंधनाय। प्रेतग्रहबंधनाय। पिशाचग्रहबंधनाय।

शाकिनीडाकिनीग्रहबंधनाय। काकिनीकामिनीग्रहबंधनाय।

ब्रह्मग्रहबंधनाय। ब्रह्मराक्षसग्रहबंधनाय। चोरग्रहबंधनाय।

मारीग्रहबंधनाय। एहि एहि। आगच्छ आगच्छ। आवेशय आवेशय।

मम हृदये प्रवेशय प्रवेशय। स्फुर स्फुर। प्रस्फुर प्रस्फुर। सत्यं कथय।

व्याघ्रमुखबंधन सर्पमुखबंधन राजमुखबंधन नारीमुखबंधन सभामुखबंधन

शत्रुमुखबंधन सर्वमुखबंधन लंकाप्रासादभंजन। अमुकं मे वशमानय।

क्लीं क्लीं क्लीं ह्रुीं श्रीं श्रीं राजानं वशमानय।

श्रीं हृीं क्लीं स्त्रिय आकर्षय आकर्षय शत्रुन्मर्दय मर्दय मारय मारय

चूर्णय चूर्णय खे खे

श्रीरामचंद्राज्ञया मम कार्यसिद्धिं कुरु कुरु

ॐ हृां हृीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः फट् स्वाहा

विचित्रवीर हनुमत् मम सर्वशत्रून् भस्मीकुरु कुरु।

हन हन हुं फट् स्वाहा॥

एकादशशतवारं जपित्वा सर्वशत्रून् वशमानयति नान्यथा इति॥

इति श्रीमारुतिस्तोत्रं संपूर्णम्॥

SONG-Maruti Stotra, ARTIST-Rajendra Vaishampayan, Natasha Dias, ALBUM-Baal Sanskar English
भीमरूपी महारुद्रा, वज्रहनुमान मारुती |
वनारी अंजनीसूता रामदूता प्रभंजना ||१||

महाबळी प्राणदाता, सकळां उठवी बळें |
सौख्यकारी दुःखहारी, दुत वैष्णव गायका ||२||

दीनानाथा हरीरूपा, सुंदरा जगदांतरा |
पाताळदेवताहंता, भव्यसिंदूरलेपना ||३||

लोकनाथा जगन्नाथा, प्राणनाथा पुरातना |
पुण्यवंता पुण्यशीला, पावना परितोषका ||४||

ध्वजांगे उचली बाहो, आवेशें लोटला पुढें |
काळाग्नी काळरुद्राग्नी, देखतां कांपती भयें ||५||

ब्रह्मांडे माईलें नेणों, आवळे दंतपंगती |
नेत्राग्नीं चालिल्या ज्वाळा, भ्रुकुटी ताठिल्या बळें ||६||

पुच्छ ते मुरडिले माथा, किरीटी कुंडले बरीं |
सुवर्ण कटी कांसोटी, घंटा किंकिणी नागरा ||७||

ठकारे पर्वता ऐसा, नेटका सडपातळू |
चपळांग पाहतां मोठे, महाविद्युल्लतेपरी ||८||

कोटिच्या कोटि उड्डाणें, झेपावे उत्तरेकडे |
मंद्राद्रीसारिखा द्रोणू, क्रोधें उत्पाटिला बळें ||९||

आणिला मागुतीं नेला, आला गेला मनोगती |
मनासी टाकिलें मागें, गतीसी तुळणा नसे ||१०||

अणुपासोनि ब्रह्मांडाएवढा होत जातसे |
तयासी तुळणा कोठे, मेरू मंदार धाकुटे ||११||

ब्रह्मांडाभोवतें वेढें, वज्रपुच्छें करू शकें |
तयासी तुळणा कैची, ब्रह्मांडी पाहता नसे ||१२||

आरक्त देखिलें डोळा, ग्रासिलें सूर्यमंडळा |
वाढतां वाढतां वाढें, भेदिलें शून्यमंडळा ||१३||

धनधान्य पशूवृद्धि, पुत्रपौत्र समग्रही |
पावती रूपविद्यादी, स्तोत्रपाठें करूनियां ||१४||

भूतप्रेतसमंधादी, रोगव्याधी समस्तही |
नासती तूटती चिंता, आनंदे भीमदर्शनें ||१५||

हे धरा पंधरा श्लोकी, लाभली शोभली बरी |
दृढदेहो निसंदेहो, संख्या चन्द्रकळागुणें ||१६||

रामदासी अग्रगण्यू, कपिकुळासि मंडणू |
रामरूपी अंतरात्मा, दर्शनें दोष नासती ||१७||

॥ इति श्रीरामदासकृतं संकटनिरसनं मारुतिस्तोत्रं संपूर्णम् ।

मारुती स्तोत्र करने की विधि

वैसे तो इस मंत्र को लोग अपने -अपने स्थानीय तरीके से करते है। लेकिन इस स्तोत्र करने की सर्वव्यापी विधि के विवरण को सूची में निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया गया है: 

  1. पूर्वांग: इससे शांति और ध्यान प्राप्त करने  के लिए आदिकालिक पूजा करें। पाठ करने से पहले, श्री हनुमान जी से प्रार्थना करें और बिना आत्मसमर्पण किए उनकी पूजा करें। यानि की उनका ध्यान देकर।  
  2. स्थान का चुनाव: स्तोत्र के के  पाठ करने के लिए एक शुद्ध, शांत स्थान चुनें।
  3. ध्यान देना और अवग्रहण करना: सुरु करने से पहले  अपने मन को साफ करने का प्रयास करें। ताकि आप इसका महत्व समझ सकें, और साथ ही उसके अर्थों को समझने की भी  कोशिश करें।
  4. मारुती स्तोत्र: इसको सुबह या सायंकाल के शुभ समय पर स्तोत्र का पाढ़  पढ़ने का प्रयास करें। स्तोत्र को सावधानीपूर्वक और श्रद्धापूर्वक पढ़ें।
  5. शब्दोच्चारण: मंत्रों को सही उच्चारण और स्पष्ट ध्वनि में पढ़ें।
  6. भावना और विश्वास: मंत्र पढ़ते समय भावनाओं के साथ पढ़ें। श्रद्धा-पूर्वक मारुती पाठ करने से भगवान की कृपा मिलती है। और जल्दी फल भी मिलता है। 
  7. अपहरण और समापन: स्तोत्र पढ़ने के बाद हनुमान जी की पूजा करें। उन्हें अपनी अनिष्टाच्छाएं और इच्छाएं दें। यानि उनको अपने मन की बात बताए।  

अंत में, आपको पाठ करने और भगवान हनुमान जी की कृपा पाने के लिए धन्यवाद।

इसका पाठ करने के लिए भक्तों का इस्तेमाल करना आम है। इस विधि को अपनी भावनाओं और आवश्यकताओं के अनुसार बदल सकते हैं, ताकि आप अपने आध्यात्मिक अनुभव को बेहतर बना सकें।

मारुती स्तोत्र का पाठ करने के लाभ

इसका पाठ करने के कुछ आवश्यक लाभों की सूची निम्नलिखित रूप में है:

  1. आत्मनिर्माण: पढ़ने से आत्मा विकसित होती है। यह स्तोत्र आपके भावनाओं को स्थिर करता है और आपको अधिक आत्म-विश्वास देता है।
  2. सुख और स्थिरता: पाठ करने से आपको मानसिक स्थिरता और शांति मिलती है। यह तनाव से बचने और आत्म-नियंत्रण विकसित करने में मदद करता है।
  3. बल और साहस: पढ़ना आपको ऊर्जा, शक्ति और साहस देता है। आपकी आत्मा में ताकत आती है, आपकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी ताकत मिलती है।
  4. आत्मविकास: पढ़ने से आपका आत्मविकास होता है। यह स्तोत्र आपकी आध्यात्मिक यात्रा को मार्ग-दर्शन करता है और आपको आत्मा के विशिष्ट लक्षणों के प्रति अधिक जागरूक करता है।
  5. परेशानियों का समाधान: पढ़ने से जीवन में आने वाले कष्टों और संकटों को दूर कर सकते हैं। आपके अधिकार में आने वाली चुनौतियों का समाधान भगवान हनुमान की कृपा से होता है।
  6. रोग नियंत्रण: पढ़ने से आपका शरीर रोगों से बच सकता है। आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, और रोगों को दूर किया जा सकता है।
  7. कार्यसफलता: पढ़ने से काम में सफलता मिलती है। भगवान हनुमान की कृपा आपके प्रयासों को सहायता देती है, और आपके लक्ष्य पूरे होते हैं।
  8. प्रेम और त्याग: पढ़ने से आपकी भक्ति और ईश्वर के प्रति विश्वास बढ़ता है। आपकी दिनचर्या में आध्यात्मिकता का भाव बढ़ता है, और आप अपने कामों को ईश्वर के लिए समर्पित करते हैं।

FAQ

यह स्तोत्र किस भाषा में लिखा गया है?

हिंदी और संस्कृत दोनों भाषाओं में है।

इसको पढ़ना कब और कैसे होता है?
कितनी बार इसको पढ़ना चाहिए?
क्या व्रत के दौरान पढ़ना चाहिए?
क्या स्त्री-पुरुष दोनों को पढ़ाया जा सकता है?
इसको दूसरे स्तोत्रों से कैसे अलग कर सकते हैं?

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